मैं महामारी से कैसे बचूँ ?

 


*मैं महामारी से कैसे बचूँ? "* यह सवाल एड्स की अवधि के दौरान लगभग 40 साल पहले एक महात्मा  से पूछा गया था! ′ तब महात्मा ने कहा आप गलत प्रश्न पूछ रहे हैं  *सही प्रश्न होना चाहिए: * महामारी (महामारी) के कारण मरने के डर से कैसे बचें? "* "क्योंकि वायरस से बचना बहुत आसान है, पर आप के और दुनिया के डर से बचना बहुत मुश्किल है। महामारी की तुलना में लोग इस भय से अधिक मरेंगे।  इस दुनिया में कोई वायरस नहीं है जो डर की तुलना में अधिक खतरनाक है। इस डर को समझें, अन्यथा आपके शरीर के मरने से पहले ही आप मृत शरीर बन जाएंगे। इसका वायरस से कोई लेना-देना नहीं है। इन पलों में जो डरावना माहौल आपको लगता है, वह सामूहिक पागलपन है ... ऐसा हजार बार हुआ है और आगे भी होता रहेगा और यह जारी रहेगा । यदि आप भीड़ और भय के मनोविज्ञान को नहीं समझते हैं। आप अपने आप को डर से बेखबर रखते होगे पर  ये सामूहिक पागलपन के क्षण में, आपकी चेतना पूरी तरह से खो सकती है। आपको यह भी पता नहीं चलेगा कि आपने अपना डर से नियंत्रण ​​कब खो दिया। फिर डर आपको कुछ भी कर सकता है। ऐसी स्थिति में आप अपनी जान या दूसरों की जान भी ले सकते हैं। इतना आने वाले समय में होगा ।  बहुत से लोग खुद को मारेंगे और कई लोग दुसरो को ज्यादा मारेंगे। ध्यान रहे, मन मनाभव हो।"

   साथियो *डर को ट्रिगर करने वाली खबर न देखें*। *महामारी के बारे में बात करना बंद करो*, क्योकि एक ही चीज को बार-बार दोहराना आत्म-सम्मोहन की तरह है। डर एक तरह का आत्म-सम्मोहन है। इस विचार से शरीर में रासायनिक परिवर्तन होंगे। यदि आप एक ही विचार को बार-बार दोहराते हैं, तो एक रासायनिक परिवर्तन शुरू हो जाता है जो कभी-कभी इतना विषाक्त हो सकता है कि यह आपको मार सकता है। एक महामारी के दौरान, दुनिया भर की ऊर्जा तर्कहीन हो जाती है। इस तरह आप कभी भी ब्लैक होल में गिर सकते हैं। ऐसे माहौल से बचने के लिए आप नियमित ध्यान साधना करे क्योकि ध्यान तो एक सुरक्षात्मक आभा बन जाता है जिसमें कोई नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं कर सकती है। जिसके परिणामस्वरूप आप बड़ी बड़ी से महामारी पर विजय होंगे ।


 जीवन की निर्भय यात्रा करो ।


याद रहे

*डर के आगे जीत है*


आपका

भगाराम पंवार 

(पत्रकार | ब्लॉगर)

Founder:- www.balotranewstrack.com


Comments

Popular posts from this blog

पत्रकारिता का गिरता स्वरूप, खो रहीं है पत्रकारिता की मूल भावना !