पत्रकारिता का गिरता स्वरूप, खो रहीं है पत्रकारिता की मूल भावना !
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पहले समाचार या विचार अखबारों में पढ़े जाते थे, फिर समाचार आकाश से आकाशवाणी के रूप में लोगों के कानों तक पहुंचने लगे। बाद में टेलिविजन का जमाना आया तो लोग समाचारों और अपनी रुचि के विचारों को सुनने के साथ ही सजीव देखने भी लगे। इन इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों की बदौलत अशिक्षित लोग भी देश-दुनिया के हाल स्वयं जानने लगे। टेलीविजन का युग आने तक आप इन सभी माध्यमों से अपने घर या दफ्तर में बैठ कर दुनिया के समाचार जान लेते थे। लेकिन सूचना महाक्रांति के इस दौर में अब सारी दुनिया आपकी जेब में आ गई है। आप कहीं भी हों, आपके जेब में पड़ा मोबाइल न केवल आपको अपने परिजनों और चाहने वालों से सम्पर्क बनाए रखता है, अपितु आपको दुनिया का पल-पल का हाल बता देता है। लेकिन वास्तविक मीडिया और सोशल मीडिया में ऐसी सूचनाओं का बहुत अधिक फर्क है। सोशल मीडिया पर पाठकों को परोसा गया कंटेंट आधा सच होता है और आधा झूठ। यह समाज और लोकतंत्र के लिए घातक है।
जिसकी जेब में मोबाइल वहीं पत्रकार
सोशल मीडिया के इस युग में तो हर आदमी खबर नवीस की भूमिका अदा करने लगा है। क्योंकि आप अपने आसपास जो कुछ भी हो रहा है, उसे सोशल मीडिया के जरिए वायरल कर दुनिया के किसी भी कोने में उस घटनाक्रम का आंंखों देखा हाल पहुंचा रहे हैं। कुछ लोग इसकी आड़ में गुमराह करने वाली फेक न्यूज़ भी फैला रहे है जिससे लोगों के दिमाग पर गहरा असर पड़ता है। समय का चक्र घूमता रहता है। यही प्रकृति का नियम है। लेकिन वह चक्र इतनी तेजी से घूमेगा, इसकी कल्पना शायद प्रख्यात भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस ने भी नहीं की होगी।
मीडिया का भावी स्वरूप क्या होगा
ऐसी स्थिति में मीडिया के भावी स्वरूप की भविष्यवाणी करना बेहद कठिन है। अगर इतनी ही तेजी से समय का चक्र घूमता रहा तो हो सकता है कि पढ़ा जाने वाला छपा हुआ अखबार भी टेलीग्राम की तरह कहीं इतिहास न बन जाए। वैसे भी अखबार कागज के साथ ही ई पेपर के रूप में कम्प्यूटर, लैपटाप या मोबाइल फोन पर आ गए हैं। कलम की तीखी धार अब कम पड़ने लगी हे जिसको समय पर संजोना जरुरी है।
सत्य पर भारी पड़ रहा है असत्य
आज पत्रकारों में भी सत्य के लिए असत्य से लडऩे वालों की संख्या निरंतर गिरती जा रही है। कारण यह कि कांटों भरी राह पर खुद तो चल लो लेकिन अपने परिवार को उस राह पर झौंकना अक्लमंदी का काम नहीं रह गया है। आज पहले की तरह आज जुझारूपन और मुफलिसी में भी बुराई के खिलाफ लड़ाऊपन सम्मान की बात नहीं रह गयी है।
सत्य पर असत्य की जीत सुनिश्चित करने वालों का बोलबाला पत्रकारिता की मूल भावना के विपरीत होने के साथ ही एक सामाजिक अपराध ही है लेकिन आज ऐसे ही अवसरवादी और भ्रष्ट लोगों को सरकार और समाज से सम्मान और संरक्षण मिलता है। जिसका राज उसके पूत पत्रकारों को ही सफलतम पत्रकार माना जा रहा है।
खत्म होने जा रहा है पत्रकारिता का मूल स्वरूप
आज के इस हाईटेक युग में सोशल मीडिया का बोलबाला बढऩे से हर कोई तथाकथित पत्रकार बना घूम रहा है। वास्तविक पत्रकारिता से ऐसे लोगों का दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं होता है। लिखना भी नहीं आता है ठीक ढ़ंग से और पत्रकारिता का डंडा लेकर अधिकारियों तक अपनी पहुंच दिखाते है जिससे आने वाले समय में असल पत्रकारिता से जुड़े लोगों पर इसका असर अधिक हो सकता है। सोशल मीडिया पर प्रसारित होने सारांश को कॉपी पेस्ट करके पाठकों तक परोस रहे है और आधी अधूरी जानकारी भी लोगों को प्रभावित करती है। अगर समय रहते मूल पत्रकारिता से जुड़े लोगों ने एकजुटता नहीं दिखाई तो आने वाले समय में उनका हीं भविष्य खतरें में पड़ सकता है।
100% सत्य बात है। आजकल पत्रकारो भी नेता बनने का शौक भी लगा हुआ है । डबल रोल में ज्यादा नजर आता रहे हैं ।
ReplyDelete100% सत्य बात है। आजकल पत्रकारो भी नेता बनने का शौक भी लगा हुआ है । डबल रोल में ज्यादा नजर आता रहे हैं ।
ReplyDeleteबिल्कुल ही सत्य है
ReplyDeleteबिल्कुल ही सत्य है
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